Delhi CAA Protest | Jamia Millia Islamia Students Protest CAA Protest Story | रकस – 5: पुलिस ने जामिया लाइब्रेरी में घुसकर छात्रों को पीटा, दिल्ली में दंगे भड़के; CAA विरोधी आंदोलन की पूरी कहानी
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15 दिसंबर 2019, दिल्ली की एक सर्द शाम। शहर में धुंध बढ़ रही थी, मगर जामिया मिलिया इस्लामिया यानी JMI यूनिवर्सिटी के बाब-ए मौलाना आजाद गेट के भीतर से अचानक धुआं उठने लगा। यूनिवर्सिटी के गेट नंबर 4 से पुलिस और पैरामिलिट्री के जवान आंसू गैस के गोले दागकर तेजी से लाइब्रेरी में घुसने लगे। स्टूडेंट्स ने लाइब्रेरी के दरवाजे भारी चीजों से बंद किए हुए थे। पुलिस दरवाजे तोड़कर अंदर घुसी और अंदर मौजूद हर स्टूडेंट पर ताबड़तोड़ लाठियां बरसा दीं।
कई स्टूडेंट्स भागे और कैंपस के गेट नंबर 8 के अंदर बनी मस्जिद में घुस गए। पुलिस ने वहां भी उनका पीछा किया और जमकर लाठियां बरसाईं। जहां इबादत होती थी, वहां खून बिखर गया। ये पूरी घटना जामिया में लगे अलग-अलग सीसीटीवी कैमरों में कैद हुई। अगले दिन, जब ये वीडियो न्यूज चैनल्स और सोशल मीडिया पर दिखाई दिए तो पूरे देश में दिल्ली पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन भड़क उठे।
आज रकस के पांचवें एपिसोड में बात जामिया यूनिवर्सिटी से शुरू हुए उस छात्र आंदोलन की, जिसके चलते पूरे देश में नागरिकता संशोधन कानून यानी CAA के खिलाफ प्रदर्शन और दंगे शुरू हो गए, जिसमें 100 से ज्यादा लोगों की जान चली गई।
CAA का विरोध प्रदर्शन सबसे पहले जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से शुरू हुआ।
इस घटना से 4 रोज पहले, 11 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन बिल यानी CAB राज्यसभा से पास हुआ था। इस बिल में पड़ोसी मुस्लिम देशों से आए गैर मुस्लिमों को भारत की नागरिकता देने के नए प्रावधान थे। खास बात ये थी कि इस बिल में केवल हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान था। मुसलमान इससे बाहर थे।
देश के ज्यादातर मुसलमान इस बिल के खिलाफ थे। वे इसे नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप यानी NRC से जोड़कर देखने लगे। उन्हें डर सता रहा था कि केन्द्र सरकार NRC के बाद CAA कानून को लागू करेगी। हिंदू-मुस्लिम समेत तमाम धर्मों के करोड़ों लोग कागजों की कमी के चलते NRC में शामिल नहीं हो पाएंगे। इसके बाद मुसलमानों के अलावा बाकी सभी को CAA के जरिए नागरिकता वापिस दे दी जाएगी, जबकि मुसलमानों की नागरिकता चली जाएगी।
इस बारे में गृहमंत्री अमित शाह का एक बयान भी आया था, जिसमें उन्होंने कहा था – आप क्रोनोलॉजी समझिए, पहले NRC आएगा उसके बाद CAA होगा। इस बिल को धार्मिक आधार पर भेदभाव से भरा और समानता के मौलिक अधिकार के खिलाफ भी कहा जाने लगा।
इस बिल को मुस्लिम विरोधी बताया जाने लगा और इसके विरोध में सबसे पहला प्रदर्शन दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से शुरू हुआ।
3 लड़कियां बनीं आंदोलन का चेहरा, इनमें 2 मुस्लिम थीं
12 दिसंबर 2019 की शाम 7 बजे। जामिया यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स ‘Reject CAA’ की तख्तियां दिखाकर प्रदर्शन करने लगे। तीन लड़कियां दीवार पर चढ़ गईं। इनमें 2 हिजाब पहने थीं। उनके नाम थे लदीदा सलाखून और आयशा रैना। वहीं तीसरी लड़की के हाथ में ढपली थी। उसका नाम था चंदा यादव। तीनों जोर से नारे लगा रही थीं। इन लड़कियों की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई।
लदीदा और आयशा इस विरोध का चेहरा बन गईं। अगले ही दिन तमाम न्यूज चैनल्स पर दोनों लड़कियों के इंटरव्यू चलने लगे। सोशल मीडिया दो धड़ो में बंट गया। एक ओर लोग इन लड़कियों के समर्थन में पोस्ट लिख रहे थे, वहीं कई इन्हें एंटी-नेशनल तक बता रहे थे।
पहली बार पत्थरबाजी और लाठीचार्ज हुए
अगले दिन, 13 दिसंबर को जामिया में प्रदर्शन जारी थे। इस दिन स्टूडेंट्स कैंपस से नारेबाजी करते हुए पार्लियामेंट तक जाने वाले थे। इस प्रोटेस्ट में 1 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स शामिल थे और इसे टीचर्स ऑर्गेनाइजेशन का भी सपोर्ट था।
मार्च शुरू होने से पहले ही पुलिस ने कैंपस के बाहर बैरिकेड्स लगा दिए। स्टूडेंट्स पर आंसू गैस छोड़ी और लाठीचार्ज कर दिया। दिल्ली पुलिस का कहना था कि कैंपस से पुलिस बल पर पत्थरबाजी की गई, तभी हमने आंसू गैस छोड़ी। वहीं स्टूडेंट्स ने कहा कि पुलिस हम पर आंसू गैस दाग रही थी इसलिए कुछ लोगों ने पत्थर चलाए।
देशभर की यूनिवर्सिटीज में शुरू हुए प्रदर्शन
13 दिसंबर को ही अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी में भी CAA के खिलाफ स्टूडेंट्स ने हंगर स्ट्राइक शुरू कर दी। स्टूडेंट्स ने अलीगढ़ डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ऑफिस तक मार्च निकाला। JNU के स्टूडेंट्स भी विरोध में शामिल हुए और दिल्ली की सड़कों पर तिरंगे लहराकर प्रदर्शन किए।
- इसके बाद लखनऊ के नदवा कॉलेज में प्रदर्शन शुरू हुआ और स्टूडेंट्स ने पुलिस पर पत्थरबाजी की।
- हैदराबाद की मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के हजारों छात्रों ने कैंपस में आजादी के नारे लगाए।
- मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के छात्रों ने CAA विरोधी तख्तियों के साथ मार्च किया।
- IIT बॉम्बे के स्टूडेंट्स भी क्लासेज का बायकॉट कर प्रदर्शन करने लगे।
- बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज का कैंपस CAA विरोधी पोस्टर्स से भर गया।
- बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के सैकडों छात्रों ने सड़कों पर उतरकर इंकलाब के नारे लगाए।
- लोयोला कॉलेज चेन्नई, IIT मद्रास, जादवपुर यूनिवर्सिटी कोलकाता समेत लगभग हर कॉलेज CAA के विरोध में उतर आया।
IIT कानपुर में भी इसके विरोध में प्रदर्शन हुआ और स्टूडेंट्स ने फैज अहमद फैज की नज्म गाकर प्रोटेस्ट किया।
जामिया की लाइब्रेरी में घुसकर पुलिस ने लाठीचार्ज किया
15 दिसंबर। विरोध का चौथा दिन। जामिया के छात्र कैंपस से जंतर-मंतर तक मार्च करने वाले थे और इसके बाद पार्लियामेंट पर धरना देने वाले थे। पुलिस ने पहले ही बैरिकेडस लगा दिए और पूरे कैंपस को छावनी में बदल दिया। स्टूडेंट्स न्यू फ्रेंडस कॉलोनी की तरफ से आगे बढ़ने लगे।
इसी दौरान न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने गाड़ियों में आग लगानी शुरू कर दी। एक सीसीटीवी फुटेज में एक 20-25 साल का नौजवान एक जलती हुई बाइक से DTC की बस में आग लगाता हुआ भी देखा गया। 3 बसें जला दी गईं जिसमें दो पुलिसकर्मी जख्मी हो गए। इसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर बेतरतीब लाठियां चलाईं।
भीड़ वापस भागी और कई लोग खुद को बचाने के लिए जामिया कैंपस के अंदर घुस गए। पुलिस ने इनका पीछा किया और लाइब्रेरी तक में घुसकर लाठियां चलाईं। ये सब लगभग 5 घंटे तक चला और इसमें सौ से भी ज्यादा स्टूडेंट्स को डिटेन कर लिया गया। पुलिस लाठीचार्ज के वीडियो अगले दिन सोशल मीडिया पर वायरल हुए।
जामिया के छात्रों ने इस हिंसा से खुद को अलग रखते हुए कहा था, ‘हम लोग शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे, हमारा इस हिंसा से कोई संबंध नहीं था।’ वहीं दिल्ली पुलिस ने अपने बयान में कहा कि कई प्रदर्शनकारी पत्थर फेंककर लाइब्रेरी में छुपने गए थे, जिसके चलते पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ी। न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी के पास कुछ उपद्रवियों ने बसों में आग लगा दी
न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी के पास कुछ उपद्रवियों ने बसों में आग लगा दी।
दिल्ली पुलिस को झेलनी पड़ी आलोचना
सोशल मीडिया पर जामिया के फुटेज वायरल होने के बाद दिल्ली पुलिस की आलोचना होने लगी। पुलिस के कैंपस के अंदर छात्रों को पीटने के खिलाफ 16 दिसंबर को देशव्यापी आंदोलन शुरू हो गए।
दिल्ली स्टूडेंट कम्युनिटी, जामिया मिलिया इस्लामिया, आईआईटी दिल्ली, एम्स दिल्ली, अंबेडकर यूनिवर्सिटी, JNU, मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी, लखनऊ यूनिवर्सिटी, BHU यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी, आईआईटी कानपुर, अहमदाबाद IIMA, माखनलाल चतुर्वेदी यूनिवर्सिटी भोपाल, पश्चिम बंगाल जादवपुर यूनिवर्सिटी, हैदराबाद यूनिवर्सिटी, आईआईटी मद्रास, असम यूनिवर्सिटी समेत देश की लगभग हर यूनिवर्सिटी में दिल्ली पुलिस डाउन-डाउन के नारे लगाए गए।
शाहीन बाग में शुरू हुआ धरना
15 दिसंबर को दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में एक खास विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। ये प्रदर्शन एक प्रमुख मार्ग कालिंदी कुंज रोड पर शुरू हुआ, जो घनी आबादी वाले शाहीन बाग को नोएडा के सैटेलाइट टाउनशिप से जोड़ता है। लगभग 100 महिलाओं ने सड़क पर बैठकर CAA के खिलाफ विरोध दर्ज किया।
खास बात ये थी कि इस प्रर्दशन में महिलाएं सबसे आगे थीं और वे अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ वहां मौजूद थीं। पुलिस प्रदर्शनकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं कर पाई। यही कारण था कि एक शांतिपूर्ण धरना अगले 101 दिनों तक जारी रहा।
शाहीन बाग प्रदर्शन महिलाओं पर केंद्रित था और आखिरी वक्त तक शांतिपूर्ण ढंग से हुआ। इसको खत्म करने की कई कोशिशें की गई थीं।
AMU में छात्राओं को ताले में बंद किया गया
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में प्रदर्शनों को रोकने के लिए गर्ल्स हॉस्टल में ताला डाल दिया गया और छात्राओं को बाहर न निकलने की हिदायत दी गई। छात्राओं ने हॉस्टल के ताले तोड़ दिए और वाइस चांसलर के ऑफिस के बाहर धरने पर बैठ गईं। इसके बाद कैंपस में धारा 144 लगा दी गई और चार से ज्यादा स्टूडेंट्स के इकट्ठे होने पर रोक लगा दी गई।
500 स्टूडेंट्स के खिलाफ FIR दर्ज की गई, जिनमें सिर्फ 21 छात्रों के नाम थे बाकी बेनाम थे। इसके बाद छुट्टियों की घोषणा कर अचानक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी प्रशासन ने हॉस्टल खाली करवा लिए।
छात्राएं इस प्रोटेस्ट में हॉस्टल का ताला तोड़कर धरने पर बैठ गई।
कन्हैया कुमार ने छात्रों को दिया आजादी का नारा
18 दिसंबर को सीपीआई नेता कन्हैया कुमार ने जामिया में प्रोटेस्ट जॉइन किया और ‘हम लेकर रहेंगे आजादी’ के नारे लगाए। कन्हैया 3 साल पहले JNU में हुए स्टूडेंट्स प्रोटेस्ट का चेहरा रह चुके थे। छात्रों की भीड़ से कन्हैया ने कहा, ‘जामिया ने बता दिया है कि ये मुसलमानों का नहीं बल्कि हिंदुस्तान का आंदोलन है।’
एक्टिविस्ट्स और फिल्मस्टार्स भी प्रदर्शन में शामिल हुए
19 दिसंबर को बेंगलुरु में रामचंद्र गुहा, हर्ष मंदर जैसे बड़े एक्टिविस्ट्स CAA विरोधी प्रदर्शन में शामिल हुए। पुलिस ने इन्हें डिटेन कर लिया। इसके बाद फरहान अख्तर, कोंकणा सेन समेत कई फिल्मस्टार्स भी विरोध में शामिल हो गए। रामचंद्र गुहा, अभिनेत्री अपर्णा सेन, मणिरत्नम समेत 49 लोगों ने CAA के खिलाफ एक ओपन लेटर लिखा।
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने जामिया के छात्रों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए लगभग 300 कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ इंडिया गेट पर एक मौन विरोध प्रदर्शन किया।
दिल्ली में राजनेता योगेंद्र यादव और सीताराम येचुरी सहित लगभग 1,200 प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। हैदराबाद में विरोध प्रदर्शन के दौरान 300 लोगों को डिटेन किया गया। पुलिस का कहना था यहां कोई भी घटना नहीं हुई है, लेकिन हिंसा न भड़के इसलिए ऐसा किया गया।
रामचंद्र गुहा को बेंगलुरु में CAA का विरोध करने के चलते गिरफ्तार किया गया।
प्रधानमंत्री ने कहा- कपड़ों से दंगाई पता चल जाते हैं
नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ पूरे देश में मुस्लिम समुदाय के लोग प्रदर्शन करने लगे। हर दिन पुलिस पर पत्थरबाजी और लाठीचार्ज के वीडियो न्यूज चैनलों पर चलने लगे। इसी दौरान झारखंड के दुमका में एक रैली को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, ‘कुछ लोग हैं, जिन्हें मोदी का हर हाल में विरोध करने की आदत पड़ चुकी है। ये जो आग लगा रहे हैं, ये कौन हैं उनके कपड़ों से ही पता चल जाता है।’
कांग्रेस ने शुरू किया सत्याग्रह फॉर यूनिटी
20 दिसंबर को कांग्रेस ने CAA के विरोध में राजघाट से सत्याग्रह फॉर यूनिटी शुरू किया। मुंबई के आजाद मैदान में भी एक बड़ी सभा की गई। इस सभा में ‘हम कागज नहीं दिखाएंगे के नारे लगाए गए’।
वहीं 22 जनवरी 2020 को गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी एक चुनावी रैली में कहा, ‘EVM का बटन इतने गुस्से के साथ दबाना कि बटन यहां बाबरपुर में दबे, करंट शाहीन बाग के अंदर लगे।’
22 जनवरी 2020 को गृहमंत्री अमित शाह एक रैली को संबोधित करते हुए।
दो विचारधाराओं में बंटने लगा देश
CAA कानून को लेकर जहां मुस्लिम समुदाय में गुस्सा था, वहीं देश में एक बड़ा वर्ग इसके समर्थन में था। सरकार के कई नेता सार्वजनिक मंचों से ये बात दोहरा रहे थे कि CAA नागरिकता लेने का नहीं, बल्कि देने का कानून है। गृहमंत्री अमित शाह ने लखनऊ में एक Pro-CAA रैली का आयोजन किया और कहा कि विपक्ष के नेता CAA को लेकर भ्रम फैला रहे हैं और देश को गुमराह कर रहे हैं। उन्होंने ये भी कहा कि चाहे इस कानून के खिलाफ कितना भी विरोध हो, CAA वापस नहीं लिया जाएगा।
सोशल मीडिया पर भी एक धड़ा CAA के समर्थन में उतर आया। CAA के खिलाफ चले सिग्नेचर कैम्पेन के विरोध में CAA समर्थन का सिग्नेचर कैम्पेन शुरू हो गया। इसके चलते पूरा देश दो विचारधाराओं में बंटने लगा।
प्रदर्शनकारियों पर युवक ने गोली चलाई
30 जनवरी 2020। देश में CAA का विरोध करने वालों के खिलाफ माहौल बन चुका था। महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर जामिया यूनिवर्सिटी में CAA के विरोध में प्रदर्शन जारी थे। अचानक 1:45 बजे हाथ में पिस्टल लहराता एक लड़का छात्रों और पुलिस के बीच में दिखाई दिया। उसने स्टूडेंट्स पर बंदूक तान दी। वो ‘जामिया मुर्दाबाद’ के नारे लगा रहा था। चूंकि वहां पुलिस मौजूद थी, लोगों को भरोसा था कि वो गोली नहीं चलाएगा, लेकिन जब दिल्ली पुलिस के जवान उसकी तरफ बढ़े, तो उसने छात्रों की तरफ गोली चला दी।
इस घटना से पहले उस लड़के ने अपने फेसबुक अकाउंट पर लाइव वीडियो पोस्ट किए थे। इन वीडियो में उसने कहा था, ‘मेरी अंतिम यात्रा में ‘जय श्री राम’ के नारे लगने चाहिए। मैं यहां अकेला हिंदू हूं। मैं आजादी दे रहा हूं। शाहीन बाग, खेल खत्म।’
CAA विरोध के चलते देश में हिंदू-मुस्लिम डिवाइड पैदा होना शुरू हो गया था। इस घटना ने नफरत की आग में घी का काम किया।
इस घटना से पहले लड़के ने अपने फेसबुक अकाउंट पर लाइव वीडियो पोस्ट किए थे।
दिल्ली में दंगे भड़के और 53 लोग मारे गए
23 जनवरी 2020। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत दौरे पर आए हुए थे। इसी दौरान भाजपा नेता कपिल मिश्रा दिल्ली के मौजपुर में CAA के समर्थन में रैली कर रहे थे। पुलिस की मौजूदगी में उन्होंने कहा, ‘डीसीपी साहब हमारे सामने खड़े हैं। मैं आप सबकी ओर से कह रहा हूं, ट्रंप के जाने तक तो हम शांत हैं, लेकिन उसके बाद हम आपकी भी नहीं सुनेंगे। ट्रंप के जाने तक आप (पुलिस) जाफराबाद और चांदबाग खाली करवा लीजिए, ऐसी आपसे विनती है। वर्ना उसके बाद हमें रोड पर आना पड़ेगा।’
दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के दौरान ही दिल्ली के कई इलाकों में CAA विरोधी प्रदर्शन अपने चरम पर थे। दिल्ली पुलिस ने दावा किया था कि डोनाल्ड ट्रंप के दौरे के समय ‘बड़ा धमाका’ करने की साजिश थी।
डोनाल्ड ट्रंप 23 से 26 फरवरी के बीच भारत की यात्रा पर थे।
ट्रंप के भारत दौरे के समय ही दिल्ली के चांदबाग इलाके में CAA समर्थक और विरोधियों के बीच हिंसक झड़प हो गई। इसके बाद, पूरी दिल्ली में दंगे भड़क उठे। अगले 3 दिन, भजनपुरा, करावल नगर, बाबरपुर, मौजपुर, गोकुलपुरी और चांदबाग इलाकों में जगह-जगह आगजनी होने लगी। गाड़ियां जलाई जाने लगीं। राहगीरों को मारा जाने लगा। दुकानों का शटर तोड़कर आग लगाई जाने लगी।
बड़ी संख्या में सुरक्षाबल तैनात किए गए। 26 फरवरी को पुलिस ने दंगों पर काबू किया। जगह-जगह जवान मार्च निकाल रहे थे और भीड़ को इकट्ठा नहीं होने दे रहे थे।
CRPF के वरिष्ठ अधिकारियों ने नाम न छपने की शर्त पर कहा था कि यह दंगा पूरी तरह से ऑर्गेनाइज्ड था। जिस दिन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप आए, उसी दिन दंगा शुरू हुआ। दिल्ली के साथ ही उसी दिन अलीगढ़ में भी हिंसा हुई। जिस हिसाब से पत्थरबाजी हुई, उससे पता चलता है कि पत्थर काफी पहले से इकट्ठा किए गए थे। पेट्रोल बम से लेकर पिस्तौल तक दंगाइयों के पास थी। ये सब चीजें अचानक नहीं आ सकतीं। दंगा भी लंबे समय तक चला। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर हमला किया।
दंगे और आगजनी के कुल 695 केस दर्ज हुए। आधिकारिक डेटा के अनुसार इन दंगों में 53 लोगों की मौत हुई।
6 मार्च को दिल्ली पुलिस ने दंगे के आरोप में JNU के पूर्व छात्र उमर खालिद और पापुलर फ्रंट ऑफ के दानिश के नाम FIR दर्ज की। आरोप था कि इन लोगों ने हिंसा भड़काने के लिए लोगों को उकसाया था। इसके बाद चार्जशीट में जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी, पापुलर फ्रंट, पिंजरा तोड़ से जुड़े लोगों के नाम भी जोड़े गए।
उत्तर पूर्वी दिल्ली के सबसे ज्यादा दंगा प्रभावित इलाकों में जाफराबाद, मौजपुर, बाबरपुर, चांद बाग, शिव विहार, भजनपुरा, यमुना विहार थे।
4 साल बाद लागू हुआ CAA
दिल्ली में हुए दंगे और कोरोना महामारी के चलते CAA और NRC ठंडे बस्ते में चले गए। इसके बाद मोदी सरकार ने अपने पूरे कार्यकाल में इन्हें लागू करने का कोई जिक्र नहीं किया। हालांकि 2024 लोकसभा चुनावों से ठीक पहले 15 मई 2024 को 14 शरणार्थियों को CAA के तहत देश की नागरिकता दी गई। 2 हफ्ते बाद 29 मई को पश्चिम बंगाल, हरियाणा और उत्तराखंड में भी CAA के तहत नागरिकता देने की शुरुआत कर दी गई है।
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